♥️पवित्र बंधन♥️
नयन......!जोर से चिल्लाई, सुधा जी....तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई....इतनी घटिया बात सोंचने की....???
चिल्लाओ मत माँ....!तुम्हारे चिल्ला ने से हकीकत नहीं बदल जाएंगी.....उम्र देखी है तुमने अपनी....इस उम्र में तुम ये सब कर रहीं हो....!इतनी बेशरमी कहां से आ गई तुम में माँ....?इस सुकेश साहनी की वजह से तुम इस बेशर्मी पर आई हो न....? इसको तो मैं अभी के अभी पुलिस के हवाले करता हूँ.....!इसकी बेटी को बुलाया है मैंने....वो भी तो देखे अपने बाप की करतूत को....!
मुझे तो यकीन ही नहीं था कि तुम ऐसी ओछी हरकत करोगी....जब जीतू ने मुझे बताया कि तुम यहाँ रह रहीं हो...तो मुझे लगा वो मज़ाक कर रहा है....पर फिर उस दिन तुम्हें वीडियो काल किया तो सब समझ आ ही गया मुझे....माँ तुम ऐसा कैसे कर सकती हो...?तुमने एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोंचा....अपनी बहू के बारे में नहीं सोचा.....क्या जवाब दूंगा मैं दुनिया को..??आपका और इस सुकेश साहनी का क्या रिश्ता है.....!तुम ने तो मुझे जीते जी मार डाला माँ......!
अभी के अभी चलो मेरे साथ.....!मैं एक पल के लिए भी तुम्हे यहाँ नहीं छोड़ूगा अब....समान पैक करो अपना......गुस्से से थरथराते हुए नयन ने कहा
और ये आपसे किसने कहा कि माँ आपके साथ आ रहीं है.....नयन ने चौंक कर गेट की ओर देखा.....
एक तीस वर्षीय युवती खड़ी थी......वो धीरे-धीरे भीतर आई.....
हैलो मिस्टर नयन माहेश्वरी....मैं सुदिप्ता.....डाँ.सुदिप्ता साहनी....और इस वक्त मेरे घर में खड़े होकर आप....मेरी माँ पर और मेरे बाबा पर चिल्ला रहें है....मैं चाहूँ तो अभी के अभी असाॅलट के जुर्म में आपको अरेस्ट करवा सकती हूँ.....!
सुदिप्ता की बात बींच में काटते हुए, नयन ने कहा....excuse ji ma'am ....शायद आप ये भूल गई है कि ये मेरी माँ है....और इन्हें आपने जबरन अपने घर में रख रखा हैं....!तो ये पुलिस की धमकी....आप को मैं भी दे सकता हूँ.....
हा हा हा हा हा हा ह....I think you are stupid.....!चलो मान लिया कि सुधा माँ को हमने जबरन अपने घर में रख रखा हैं.....पर क्या आप इस जबर्दस्ती का कारण नहीं जानना चाहते हैं....??
क्या कारण हैं....साफ साफ दिख रहा है.....आपको भी दिखा दूँ....एक विधवा की मांग में सिंदूर, ये भरी भरी चूड़ीया....और ये साज श्रृंगार.....मेरी माँ को बुढ़ापे में जवानी फूट रहीं हैं.....!तंज कसते हुए नयन ने कहा
तड़ाक....!!!!जोर का थप्पड़ पड़ा नयन के गाल पर.....
मिस सुदिप्ता.......!!!Have u lost your senses......How dare u to slap me....????
मुझमें हिम्मत भी हैं....और हक भी हैं थप्पड़ मारने का.....क्यूँकि आप जिसके लिए बात कर रहे है वो मेरी माँ है.....मिसेस सुधा साहनी....!आपने इनका साज श्रृंगार देखा पर....जो देखना चाहिए वो ही नहीं देखा.....कहते हुए सुदिप्ता, सुधा जी की सारी को थोड़ा उपर कर देती है......!!
नहींईईईईईई......माँआआआआआ.....माँ ये क्या हैं माँ....?कब हुआ ये....?तुम्हारे पाँव.....जयपुर फुट.....ओह माँ कब हुआ ये... माँ कब हुआ......सुधा जी को गले लगा, नयन रो पड़ा
ये तब हुआ मिस्टर नयन जब आप माँ को छोड़ लंडन जा बसे थे....आपने सोंचा तक नहीं कि अकेली जान कैसे जीएगी...?किसके सहारे जी पाएँगी....?सुदिप्ता बोली....बताओं माँ .. क्या हुआ था आपके साथ???इन्हें भी तो पता चलें इनका पाप....!!!सिर्फ कहलाने भर के बेटे है ये आपके....जो आपकों मरने के लिए अकेला छोड़ गया था....!!!अब बारी सुदिप्ता की थीं, नयन पर तंज कहने की
याद है नयन, आज से चार साल पहले, मैंने तुझे कितने काल्स किये थे....उन दिनों मैं डेंगू की चपेट में आ गयी थी....शरीर में रत्ती भर हिम्मत नहीं बची थी....कि डाक्टर को दिखा सकूँ या दवा पानी कर सकूँ....कैसे भी कर के एक दिन घर से निकली थी पर कमजोरी की वजह से चक्कर खा कर गिर पड़ी....बींच सड़क....!पीछे से आते मेटाडोर ने मेरे पैर के उपर से.....कहते-कहते सुबक पड़ी सुधा जी....!
इनको मेरे हास्पीटल जिस हालत में लाया गया था, वो मैं बयां नहीं कर सकती हूँ....दस घंटे के आपरेशन के बाद इनको बचाया जा सका था....पर शुगर पेशेंट होने की वजह से इनके पैर को काटना पड़ा था....!सुदिप्ता ने सुधा जी के आँसू पोंछते हुए कहा....
हाँ....जानते हो नयन मैं तो जीना ही नहीं चाहती थी...पर ये बच्ची मुझे अपने घर यहाँ लेकर आ गई....इसने और साहनी जी ने मेरी इतनी सेवा की जितनी मेरा कोई सगा भी नहीं करे....पूरे दो साल लगे मुझे ठीक होने में....!सुधा जी ने कहा....और उन दो सालों में मुझे परिवार का सुख मिला..वो केयर मिली जो न तुम्हारे पिता कभी दे पायें थे और न तुम...!मैंने हमेशा मेरी हर खुशी का गला घोटा था....कभी तुम्हारे लिए....कभी तुम्हारे पिता के झूठे अहंकार के लिए....! इन दोनों को पा कर मैं स्वार्थी हो गई थी...मैं खुद इन्हें छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी.....!
मैं आपको जाने भी नहीं देती माँ....!आपने मुझे वो प्यार दिया हैं जिससे मैं बचपन से महरूम थी...!मेरी माँ तो मेरे जन्म के कुछ समय बाद ही चल बसी थी....पापा ने मुझे बहुत कुछ दिया...पर माँ की कमी आपने पूरी की....!
और इसीलिए नयन जी...मैंने इन्हें मेरी माँ बना ही लिया....इनकी और बाबा की शादी करा के....!इन दोनों का रिश्ता उतना ही पवित्र और निर्मल हैं जितनी पवित्र मंदिर में भगवान की मूरत होती है...!ना कोई छल....ना कपट....!हाँ....एक दुसरे के पूरक जरूर बन गए हैं ये दोनों अब.....!उम्र के इस दौर में सबसे ज्यादा जरूरत एक जीवन साथी की होती हैं.....!जो माँ की तरह ख़याल रखें, पत्नी सी फ़िक्र करे, बेटी सा डांट दे और दोस्त सी बातें करे....!आपने जिस देवी को बेशर्म और बदचलन कहा हैं न, वो दरअसल दुनिया में सबसे पाक है.....!हाँ इनका कसूर इतना ही था, बेटे बहू के होते हुए, ये इस दुनिया में नितांत अकेली थी.....!
बस करो दीदी.....!नयन, सुदिप्ता के पैरो में गिर पड़ा....मुझे मेरी ग़लती का एहसास हो गया है....मैं आप सब से माफ़ी मांगता हूँ....अपने छोटे भाई को माफ़ कर दो....!फिर सुकेश जी की तरफ देखतें हुए, नयन ने कहा....पापा......क्या इस बेटे के सर पर हाथ रखेंगे?एक बार गले लगा लिजिए ना......सालो हो गए.....पिता के गले लगे.....!सुबकते हुए नयन ने कहा
सुकेश जी ने, नयन को कस के गले से लगा लिया.... सुधा जी और सुदिप्ता दोनों.....आकर सुकेश जी और नयन के गले लग गई....!
फिर रोते रोते नयन ने कहा....माँ....मुझें माफ़ कर दो...! मैं आपके और अंकल के रिश्ते की पवित्रता देख ही नहीं पाया....! दुनिया के चश्में से देखने पर अक्सर चीजें ज्यादा मैली दिखतीं हैं....लोगों की बातों का रंग जो चढ़ा हुआ होता है, पहले से...!!!
बेटा लोग अक्सर रिश्तों की लाश ढ़ोते है!कुछ बंधन तो ऐसे होते है जिनका नाम होकर भी वो बेनाम हो जातें हैं और कुछ ऐसे ही बेनाम रिश्तें, अपनों से बढ़कर हो जातें हैं!!!ऐसा ही रिश्ता मेरा बन गया था साहनी साहब से! पर इस ना समझ दुनिया को हमारा रिश्ता समझ ही नहीं आया...हर कोई इसे पर ऊँगली उठाने लगा था...इसीलिए सुदिप्ता ने हमें एक बंधन में बाँध दिया! एक ऐसा बंधन जो इस देह के परे हैं! एक ऐसा बंधन जो किसी स्वार्थ पूर्ति के लिए नहीं हैं अपितु साथ देने के लिए है!!!गुमनामी की जिंदगी ज़ीने के बजाएं इस बंधन से मुझें एक पहचान मिली है!
समझ गया माँ....मैं समझ गया....!किसी को क्या दोष दूँ....???मैंने तो ख़ुद ने ही कितना ग़लत सोंच लिया....अपनी माँ के लिए! पर अब मुझें किसी के कुछ भी कहने की कोई परवाह नहीं!कहतें कहतें नयन ने एक बार फ़िर सुदिप्ता को, सुधा जी को और साहनी साहब को गले लगा लिया....चारों की डोर जो कि एक पवित्र रिश्ते से बंधी थी आज और मजबूत हो गई.... क्यूँकि ये डोर समय और नियती ने बाँधी थी न की स्वार्थ की पृष्ठभूमि ने....!!
~~~~~~~~~~समाप्त~~~~~~~~~~~~
मौलिक एवं स्वरचित रचना,
नेहा चौधरी द्वारा
Vfyjgxbvxfg
03-Jul-2021 04:07 PM
बहुत सुंदर रचना मैंम साथ ही एक खूबसूरत संदेश
Reply
🤫
02-Jul-2021 01:12 PM
खुबसूरत रचना, बढ़िया संदेश
Reply
Natash
02-Jul-2021 01:11 PM
👍👍👍
Reply